The Tughlaq Dynasty| तुगलक वंश का इतिहास
The Tughlaq Dynasty| तुगलक वंश का इतिहास
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हैं।
तुगलक वंश |
The Tughlaq Dynasty| तुगलक वंश का इतिहास
- गयासुद्दीन तुगलक ( 1320 - 1325 ई० )
- मोहम्मद बिन तुगलक ( 1325 - 1351 ई० )
- फिरोजशाह तुगलक( 1351 - 1388 ई० )
- तुगलकशाह ( 1388 - 1394 ई० )
- नसीरुद्दीन महमूदशाह ( 1394 - 1414 ई० )
गयासुद्दीन
का मूल नाम गाजी तुगलक अथवा गाजी बेग था। इब्नबदूता के अनुसार वह तुर्कों की करौना शाखा से संबंधित था। गयासुद्दीन
तुगलक तुगलक वंश का संस्थापक( The founder of tughlaq dynasty ) था।
इसका पिता करोन तुर्क तथा माता जाट थी। इसका पिता बलबन का दास था। इसने लगभग 29 बार मंगोलों के आक्रमण को विफल किया दिल्ली का यह प्रथम सुल्तान था जिसे
राज घराने से संबंधित न होने पर भी अमीरों व सरदारों ने आग्रह पूर्वक सुल्तान
बनाया था।
इसने गाजिया काफिरों का घातक की उपाधि धारण की थी।
गयासुद्दीन
तुगलक ने सिंचाई की सुविधा के लिए कुओं व नहरों का निर्माण करवाया। संभवतः नहरों का निर्माण करवाने
वाला यह पहला सुल्तान था। यह बहुत दानी स्वभाव का था।
गयासुद्दीन तुगलक ने अपने
शासनकाल में दिल्ली के समीप स्थित पहाड़ियों पर तुगलकाबाद के नाम से एक नया नगर
बसाया, इस नगर का निर्माण रोमन शैली में किया गया था।
इस नगर में एक नए दुर्ग 56 कोट का भी निर्माण किया गया था। किले के अंदर निर्मित महल के विषय में “इब्नबतूता ने कहा है, कि राजमहल सूर्य के प्रकाश में इतना चमकता था कि कोई भी व्यक्ति
टकटकी बांधकर उसे नहीं देख सकता था”।
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गयासुद्दीन तुगलक के संबंध में एस.आर शर्मा ने कहा है कि यह विशेषकर प्रशासनिक नीति में
अग्रगामी शेरशाह था।
गयासुद्दीन
तुगलक की मृत्यु उसके पुत्र द्वारा किए गए षड्यंत्र का परिणाम था। इस संबंध में
कहा जाता है, कि सुल्तान जब लखनौती पर विजय कर लौट रहा था तो वापसी के क्रम में तुगलकाबाद से 8 किलोमीटर की दूरी पर अफगानपूर में उसके पुत्र जोना खाँ द्वारा लकड़ी की एक भवन का
निर्माण किया गया था।
जिसमें गयासुद्दीन के
प्रवेश करने के साथ ही वह महल धराशाई हो गया जिसमें सुल्तान दबकर मर गया इस भवन का
निर्माण अहमद अयाज ने करवाया था।
अपनी
पिता की मृत्यु के 3 दिन पश्चात जूना खाँ ने मोहम्मद बिन
तुगलक की उपाधि धारण कर अपने आप को दिल्ली का सुल्तान घोषित किया मगर पिता
के मृत्यु के कारण शोक में 40 दिन पश्चात अपना
राज्याभिषेक करवाया।
मोहम्मद
बिन तुगलक के समय अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता 1333 ई० में भारत आया। जिसका सुल्तान ने खूब स्वागत किया
तथा उसे दिल्ली का काजी नियुक्त किया।
साथ ही 1342 ई० में वह सुल्तान के राजदूत के हैसीयत से चीन गया। इसने मोहम्मद बिन तुगलक
के समय की घटनाओं का अपनी पुस्तक “रेहला” में उल्लेख किया है।
मोहम्मद
बिन तुगलक दिल्ली के सभी सुल्तानों में योग्य तथा विलक्षण प्रतिभा का धनी व्यक्ति
था। साथ ही वह कला प्रेमी तथा अनुभवी सेनापति था। लेकिन फिर भी वह असफल रहा उसके
असफलता में उसके विभिन्न विवादास्पद योजनाएं महत्वपूर्ण थी। मोहम्मद बिन तुगलक के
विषय में एडवर्ड थॉमसन ने कहा है कि यह धनवानों का राजकुमार था।
इतिहास
में मोहम्मद बिन तुगलक को सनकी, रक्त का प्यासा या पागल
बादशाह कहा जाता है।
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प्रथम
योजना:- के तहत मोहम्मद बिन तुगलक
ने दोवाब
क्षेत्र में 50% तक कर वृद्धि कर दी दुर्भाग्यवश उसी
वर्ष अकाल पड़ा था। और सुल्तान के अधिकारियों ने कर उगाही में शक्ति का प्रयोग
किया फलतः जनता विद्रोह पर उतर गई और सुल्तान को अपनी योजना वापस लेनी पड़ी।
दूसरी
योजना:- सुल्तान की दूसरी योजना दिल्ली से राजधानी देवगिरी या दौलताबाद में
स्थानांतरित करने के लिए था। अब प्रश्न उठता है, कि सुल्तान ने राजधानी का
परिवर्तन क्यों किया इसके विषय में भी विद्वानों में मतभेद है। बरनी कहता है कि देवगिरी
साम्राज्य के केंद्र में था यहां से सुल्तान संपूर्ण सल्तनत पर नजर रख सकता था। लेकिन यह बात सत्य प्रतीत
नहीं होती क्योंकि मालूम होता है कि बरनी को भौगोलिक स्थिति की जानकारी नहीं थी।
इब्नबतुता लिखता है कि
दिल्ली के निवासियों ने सुल्तान के विरुद्ध कुछ निंदनीय पत्र लिखे थे इसलिए इनको
सजा देने के उद्देश्य से उसने ऐसा किया।
लेकिन ठीक इसके विपरीत
गर्डेनर ब्राउन के विचार से सुल्तान राजधानी को मंगोलों के आक्रमण के भय से दूर
रखना चाहता था।
लेकिन जो भी हो सुल्तान
द्वारा राजधानी परिवर्तन की योजना असफल रही सुल्तान शीघ्र ही 1335 ई० को लोगों को दिल्ली जाने की आज्ञा प्रदान कर दी।
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तीसरी
योजना:- सुल्तान की तीसरी योजना सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन था। सुल्तान
द्वारा सांकेतिक मुद्रा जारी करने के विषय में भी विद्वानों में मतभेद है बरनी के
विचार में चुकी सुल्तान का खजाना विभिन्न कारणों से खाली हो गया था जिस कारण उसने
सांकेतिक मुद्रा चलाया।
लेकिन नेल्सन के विचार में
सुल्तान द्वारा सांकेतिक मुद्रा जारी करने का कारण उस समय भारत तथा विश्व में
चाँदी की कमी होना माना जाता है।
प्रश्न उठता है कि आखिर
सांकेतिक मुद्रा किस धातु के बने थे। फरिश्ता के अनुसार यह सिक्के पीतल तथा बरनी के
अनुसार ताँबा धातु के बने थे। जिनका मूल्य चाँदी के सिक्के के बराबर रखा गया।
चौथी
योजना:- सुल्तान की चौथी योजना खुरासान एवं कार्चील विजय की योजना थी सर्वप्रथम
सुल्तान ने संभवतः एक त्रिमात्री संगठन का निर्माण किया जिसमें सुल्तान तारमांश्रीण खाँ
तथा मिश्र के शासक तीनों मिलकर खुरासान विजय करना चाहे। उस समय खुरासान का शासक अबूसईद था।
राजनीतिक परिस्थितियों के
कारण दोनों देशों के बीच सन्धि हो गई और सुल्तान की यह योजना भी असफल हो गई।
इसी प्रकार कार्चील प्रदेश जो ब्राउन
के अनुसार आधुनिक मध्य हिमालय में बसे कुल्लू तथा कांगड़ा और मेहंदी हसन के अनुसार
गढ़वाल तथा कुमायूं का प्रदेश था। को विजित करने की योजना थी लेकिन सुल्तान इसे भी
विजित नहीं कर सका इस प्रकार सुल्तान की सभी योजनाएं असफल हो गई।
मोहम्मद
बिन तुगलक के समय 1327 ई० में मंगोल आक्रमणकारी
तारा मां शिरीन चुगताई मुल्तान व लाभधान में लूटपाट किया तथा इसे मोहम्मद बिन तुगलक
रिश्वत देकर लौटा दिया इस मत का समर्थन फरिश्ता करते हैं।
लेकिन मेहंदी हसन के
अनुसार तारा मां शरीन एक शरणार्थी के रूप में भारत आया था। और सुल्तान उसे सहायता के
रूप में 5000 दिनार दिए और वह वापस चला गया।
मोहम्मद बिन तुगलक के शासन
काल में 1327 ई० में उसके चचेरे भाई गुरु सास ने विद्रोह किया जिसे सुल्तान ने
परास्त कर दिया।
इसी के शासनकाल में ही
दक्षिण में 1336 ई० में हरिहर एवं बुक्का नामक दो हिन्दू भाइयों ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की। इसी प्रकार
1347 ई० में अलाउद्दीन बहमन शाह ने स्वतंत्र बहमनी राज्य की स्थापना की।
उसके मरने पर इतिहासकार बदायूनी ने कहा है कि
सुल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को अपने सुल्तान से मुक्ति मिल गई।
मोहम्मद
बिन तुगलक ने तुगलकाबाद के समीप आदिलाबाद नामक किले का निर्माण करवाया।
इसी प्रकार मोहम्मद बिन
तुगलक ने जहाँपनाह नगर की स्थापना रायफिरौती और सीरी के मध्य करवाया।
मोहम्मद
बिन तुगलक धार्मिक रूप से सहिष्णु व्यक्ति था। उसके विषय में जैन परंपरा के अनुसार
कहा जाता है, कि जैन विद्वान जिन परमासुरी का 1328 ई० में स्वागत किया था। मोहम्मद बिन तुगलक को गयासुद्दीन तुगलक के शासन काल में उलूग खाँ की उपाधि प्रदान की गई थी।
सुल्तान
मोहम्मद बिन तुगलक ने कृषि के विकास के लिए एक नए विभाग दीवान-ए-अमीरकोही की स्थापना की। जो मलगुजारी व्यवस्था की देखरेख तथा भूमि को खेती योग्य बनाने में कृषकों को
सहायता प्रदान करता था।
अपने शासन के अंतिम समय में
जब सुल्तान गुजरात में विद्रोह को कुचल कर ताकि को समाप्त करने के लिए सिंध की ओर बढ़ा तो मार्ग में थट्टा के निकट गोढ़ाल में 20 मार्च 1351ई० को उसकी मृत्यु हो गई।
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