खिलजी वंश का इतिहास। khilji dynasty in hindi

खिलजी वंश का इतिहास। khilji dynasty in hindi


प्रिये पाठकों जैसा की आप सभी जानते ही, हैं की आजकल की लगभग सभी परतियोगिता परीक्षाओं में इतिहास से सम्बंधित प्रश्न अकसर पूछे जाते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुवे आज Easy Mathematics अपने इस पोस्ट में दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश से जुडी कुछ परीक्षोपयोगी परीक्षाओं के लिये उपयोगी तथ्य को आपलोगों के लिए लेकर आया है। अतः आप हमारे इस पोस्ट खिलजी वंश का इतिहास। khilji dynasty in hindi को पढ़ सकते हैं।

खिलजी वंश का इतिहास। khilji dynasty in hindi
खिलजी वंश


खिलजी वंश का इतिहास। khilji dynasty in hindi


खिलजी वंश खिलजी मूल रूप से तर्क थे। परंतु लंबे समय तक अफगानिस्तान में रहने की वजह से उन पर वहां के आचार विचार का गहरा प्रभाव पड़ा था। इनमें से कुछ लोग गजनवी के साथ कुछ लोग गोरी के साथ तथा कुछ लोग मध्य एशिया में राजनीतिक उथल-पुथल के पश्चात भारत आये। यहाँ उन्हें तुर्की लोगों से भिन्न समझा गया परंतु खिलजी भी 64 तुर्की जातियों में से एक थे।
खिलजी वंश की स्थापना का अर्थ था इल्वरी वंश के एकाधिकार का अंत इसलिए इस वंश परिवर्तन को इतिहास में खिलजी क्रांति के नाम से जाना जाता है।
खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन फिरोज खिलजी था। यह कैकूबाद के शासनकाल में सेनापति तथा बुलंदशहर का इक्तादार रह चुका था। कैकूबाद को लकवा मारने के पश्चात उसने समसुदीन का वध करवा दिया और सुलतान बन बैठा।
इसने किलखोरी अथवा किलुगड़ी को अपनी राजधानी बनाया। जलालुद्दीन ने अपने राज्याभिषेक के 1 वर्ष बाद दिल्ली में प्रवेश किया। इसने अगस्त 1290 ई० में कड़ा, मानिकपुर के सूबेदार मलिक छज्जू जिसने सुल्तान मूगीसुद्दीन की उपाधि धारण की थी के विद्रोह को दबाया।
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी

फिरोज खिलजी ने 1292 ई० में मंगोल आक्रमणकारी हल्लाकू के पौत्र अब्दुल्ला को हराया। जिसने पंजाब पर आक्रमण किया था अंत में दोनों के बीच सन्धि हुई और मंगोल वापस जाने को तैयार हो गये।
परंतु चंगेज खाँ का नाती उलगू खाँ ने अपने 4000 मंगोलो के साथ इस्लाम धर्म स्वीकार कर भारत में रहने का निर्णय लिया। उसे रहने के लिए फिरोज खिलजी ने दिल्ली के समीप ही मुगरलपुर नाम की नगर बसाई बाद में उन्हें ही नवीन मुसलमान के नाम से जाना जाता है।
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के शासन काल में ही उसके भतीजे एवं दामाद अलाउद्दीन खिलजी ने 1292 ई० में अपने चाचा की स्वीकृति के बाद भिलसा एवं देवगिरि का अभियान किया। अपने भतीजे की सफलता से प्रसन्न होकर जलालुद्दीन फिरोज खिलजी उससे मिलने मानिकपुर की ओर चल पड़ा रास्ते में गंगा नदी के तट पर जिस समय फिरोज खिलजी अलाउद्दीन से गले मिल रहा था उसी समय उसकी सर काट कर हत्या कर दी गई, इस प्रकार अपने चाचा की हत्या कर अलाउद्दीन खिलजी ने 22 अक्टूबर 1296 ई० को अपना राज्याभिषेक करवाया।
फिरोज खिलजी को अपनी भतीजे से मिलने जाने के वक्त उसके विश्वासपात्र अहमदचाप ने उसे वहां जाने से रोका था।
अलाउद्दीन खिलजी ( 1296 - 1316 ई० )
अलाउद्दीन खिलजी ( 1296 - 1316 ई० )
अलाउद्दीन खिलजी ( 1296 - 1316 ई० )

इसके बचपन का नाम अली तथा गुरशास्प था। जलालुद्दीन की दिल्ली के तख्त पर बैठने के पश्चात इसे अमीर-ए-तुजुक का पद मिला मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण इसे कड़ा तथा मानिकपुर की सूबेदारी मिली। तथा बाद में अपने चाचा फिरोज खिलजी की हत्या करके 22 अक्टूबर 1296 को दिल्ली में स्थित बलबन के लाल महल में अपना राज्याभिषेक करवाया।
अलाउद्दीन खिलजी को जनता का चरवाहा भी कहा जाता है।

अलाउद्दीन खिलजी की कुछ कृतियां
Ø  जमीयत खाना मस्जिद
Ø  अलाई दरवाजा
Ø  सीरी का किला तथा
Ø  हजार खंभा महल
का निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने करवाया था।

अलाउद्दीन खिलजी के समय हुए मंगोल आक्रमण
अलाउद्दीन खिलजी के समय हुए मंगोल आक्रमण
मंगोल आक्रमण

शासक बनने के बाद अलाउद्दीन खिलजी को अनेक विद्रोही शासकों तथा आक्रमणकारियों का सामना करना पड़ा जिसमें मंगोल महत्वपूर्ण हैं। इसके शासनकाल में मंगोलो ने विभिन्न सेनापतियों के नेतृत्व में 6 बड़े आक्रमण किये।
पहला आक्रमण:- अल्लाउद्दीन खिलजी के समय 1297-98 ई० में मंगोल अपने कद्दावर नेता कादर के नेतृत्व में पंजाब एवं लाहौर पर आक्रमण किया। जिसमें सुल्तान की ओर से सेना का नेतृत्व जफर खाँ एवं उलूग खाँ ने किया जफर खाँ एवं उलूग खाँ ने सुल्तान की ओर से लड़ते हुए जालंधर के निकट मगोलों को पराजित किया।
दूसरा आक्रमण:- मंगोलो का दूसरा आक्रमण सलदी के नेतृत्व में 1298 ई० में सेहबान पर हुआ जिसमें जफर खाँ ने पुनः मंगोलो को परास्त किया।
तीसरा आक्रमण:- 1299 ई० में पुनः मंगोल कुतलग ख्वाजा के नेतृत्व में भारत पर आक्रमण किए इस युद्ध में भारत आने का उनका उद्देश्य अन्य युद्ध की भांति लूट नहीं था। बल्कि वह भारत में स्थाई रूप से बसना चाहते थे। अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह दिल्ली तक पहुंच गए यहां भी उनका मुकाबला जफर खाँ से हुआ मंगोल परास्त हो गए लेकिन युद्ध में जफर खाँ मारा गया।
चौथा आक्रमण:- 1304 ई० में ख्वाजाताश एवं अली वेग के नेतृत्व में किया लेकिन अल्लाउद्दीन उसे परास्त करने में सफल रहा।
पाँचवाँ आक्रमण:- अली बेग, तर्ताक एवं तार्गी के नेतृत्व में हुआ परंतु मलिक काफूर एवं गाजी मलिक ने उन्हें पराजित किया।
छठा आक्रमण:- सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के समय अंतिम मंगोल आक्रमण इकबालमन्द के नेतृत्व में 1308 ई० में हुआ मगर गाजी मलिक ( गयासुद्दीन तुगलक ) के द्वारा रावी नदी के तट पर पराजित हुआ और मारा गया।
v  अलाउद्दीन खिलजी ने स्थायी सेना की स्थापना की।
v  सैनिकों को नगद वेतन देने की प्रथा चलाई।
v  साथ ही सैनिकों की हुलियां लिखने का नियम बनाया।
v  साथ ही वह प्रथम सुल्तान था जिसने घोड़े पर दाग लगवाने की प्रथा चलवाई।



अल्लाउद्दीन ने तुर्क अमीरों द्वारा किए जाने वाले विद्रोहों के कारणों का अध्ययन कर उन कारणों को समाप्त करने के लिए चार अध्यादेश जारी किए-
1.  पहले अध्यादेश के अंतर्गत अलाउद्दीन ने दान, उपहार एवं पेंशन के रूप में अमीरों को दी गई भूमि को जप्त कर उस पर अधिकार कर लिया इससे उन अमीरों के पास धना भाव हो गया।
2.  द्वितीय अध्यादेश के अंतर्गत अल्लाउद्दीन ने गुप्तचर विभाग को संगठित कर बरीद ( गुप्तचर अधिकारी ) एवं मुजहिस ( गुप्तचर ) की नियुक्ति की।
3.  तीसरी अध्यादेश के अंतर्गत मध्य निषेध, भांग खाने एवं जुआ खेलने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया।
4.  चौथी अध्यादेश के अंतर्गत अल्लाउद्दीन ने अमीरों के आपस में मेलजोल एवं सार्वजनिक समारोह एवं वैवाहिक संबंधों पर प्रतिबंध लगा दिया।
अपनी प्रारंभिक सफलताओं से प्रोत्साहित होकर अलाउद्दीन खिलजी ने सिकंदर-ए-सानी ( द्वितीय सिकंदर ) की उपाधि ग्रहण कर इसका उल्लेख अपने सिक्कों पर करवाया साथ ही उसने विश्व विजय एवं नवीन धर्म को स्थापित करने का विचार रखा लेकिन उपर्युक्त विचार अपने मित्र एवं दिल्ली के कोतवाल अल्ला-उल-मुल्क के सलाह पर त्याग दिया।
अल्लाउद्दीन खलीफा की सत्ता को मान्यता प्रदान करते हुए यामीन-उल-खिलाफत-अमीर-उल-मोमिनीन की उपाधि धारण की थी।

अलाउद्दीन खिलजी का साम्राज्य विस्तार
अलाउद्दीन खिलजी का साम्राज्य विस्तार
अलाउद्दीन खिलजी का साम्राज्य विस्तार

अल्लाउद्दीन खिलजी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का व्यक्ति था। उसने उत्तर भारत को जीत कर उस पर प्रत्यक्ष शासन किया तथा दक्षिण भारत को अपने अधीन कर उनसे वार्षिक कर वसूला।
गुजरात विजय:- 1298 ई० में अलाउद्दीन खिलजी ने उलगू खाँ एवं नुसरत खाँ को गुजरात विजय के लिए भेजा उस समय वहाँ का राजा कर्ण था। अहमदाबाद के निकट दोनों सेनाओं में युद्ध हुआ कर्ण परास्त होकर अपनी बेटी देवल देवी को लेकर भाग गया।
इस युद्ध में खिलजी सेना को कर्ण की संपत्ति एवं उसकी पत्नी कमला देवी प्राप्त हुई कालांतर में कमला देवी से सुल्तान ने शादी कर ली तथा उसे सबसे प्रिय रानी बना लिया। यहां पर नुसरत खाँ ने हिन्दू हिजड़े मलिक काफूर को 1000 दिनार में खरीदा फलतः मलिक काफूर को हजार दिनारी भी कहा जाता है।
रणथम्भौर पर विजय:- यहां का शासक हम्मीर देव अपनी योग्यता एवं साहस के लिए प्रसिद्ध था रणथम्भौर पर अलाउद्दीन खिलजी द्वारा किए गए आक्रमण का तात्कालिक कारण हम्मीर देव द्वारा मंगोल नेता मोहम्मद शाह एवं केहब को शरण देना था। जुलाई 1301ई० में अलाउद्दीन रणथंभौर के किले को अपने कब्जे में ले लिया, हम्मीर देव वीरगति को प्राप्त हुआ।
तारीख-ए-अलाई एवं हम्मीर महाकाव्य में हम्मीर देव उसके परिवार के लोगों का जौहर द्वारा मृत्यु प्राप्त होने का वर्णन है।
चितौड़ पर आक्रमण:- 28 जून 1303 ई० मे सुल्तान ने मेवाड़ की राजधानी चितौड़ पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। उस समय वहाँ का शासक राजा रतन सिंह था। वह युद्ध में सहीद हो गया तथा उसकि पत्नी रानी पद्मिनी ने अन्य स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया। लेकिन बाद में गहलौत राजवंश के हम्मीर देव ने मेवाड़ सहित सम्पूर्ण चितौड़ को आजाद करवा लिया।
मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखित पद्मावत से ज्ञात होता है कि अलाउद्दीन खिलजी  रानी पद्मिनी की सुन्दरता पर मोहित था।
जियाउद्दीन बरनी ने कहा है, कि अल्लाउद्दीन खिलजी इतना रक्त बहाने का दोषी है, जितना कि फैरों ने भी कभी नहीं बहाया था।
“मैं नहीं जानता कि यह विधि के अनुरूप है या नहीं मैं केवल राज्य कल्याण को ध्यान में रखकर ही सभी आज्ञाएँ देता हूँ” यह कथन अलाउद्दीन खिलजी का है।

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