दिल्ली सल्तनत का इतिहास| The Delhi Sultanate in Hindi
दिल्ली सल्तनत का
इतिहास
प्रिये पाठकों जैसा की आप सभी जानते ही, हैं की आजकल की
लगभग सभी परतियोगिता परीक्षाओं में इतिहास से सम्बंधित प्रश्न अकसर पूछे जाते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुवे आज Easy
Mathematics अपने
इस पोस्ट में दिल्ली सल्तनत से जुडी
कुछ परीक्षोपयोगी परीक्षाओं के लिये उपयोगी तथ्य को आपलोगों के लिए लेकर आया है। अतः आप हमारे इस पोस्ट “दिल्ली सल्तनत का
इतिहास” को पढ़ सकते हैं।
दिल्ली सल्तनत |
दिल्ली सल्तनत का इतिहास
मोहम्मद गौरी की मृत्यु के पश्चात उसका कोई वैध उत्तराधिकारी नहीं था। उसका कहना था कि मेरे दास मेरे पुत्रों के समान है, जो मेरी मृत्यु के पश्चात भी मेरे वैभव मेरे सम्मान तथा मेरी प्रतिष्ठा की रक्षा करेंगे।
कुतुबुद्दीन ऐबक भी मोहम्मद गौरी का दास था। गौरी ने उसे 1192 ई॰ में भारतीय प्रदेश का प्रशासक नियुक्त किया था। अतः भारतीय
क्षेत्र का नियंत्रण उसे ही प्राप्त हो गया।
दिल्ली सल्तनत के शासकों का क्रम
- कुतुबुद्दीन ऐबक (
1206-1210 )
- आरामशाह ( 1210-1211 )
- इल्तुतमिश ( 1211-1236
)
- फिरोजशाह (1236 6 month & 7 days )
- रजिया सुल्तान ( 1236-1240 )
- बहरामशाह ( 1240-1242
)
- अलाउद्दीन-मसूदशाह ( 1242-1246 )
- नसीरूदीन महमूद ( 1246-1266 )
- गयासुदीन बलबन ( 1266-1286 )
- कैकुबाद ( 1287-1290 )
- शमसुदीन ( 1287-1290 )
1206 ई॰ से 1290 ई॰ तक भारत पर शासन
करने वाले शासकों को मामलूक नाम से सम्बोधित किया जाता है। दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान तथा भारत में तुर्की साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक को माना जाता है।
दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान:- कुतुबुद्दीन ऐबक
1206 ई॰ में कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत के साम्राज्य को
गजनी के शासन से मुक्त कर स्वतंत्र शासन की आरंभ की उसने दास अथवा गुलाम वंश की स्थापना की दिल्ली के
सिंहासन पर पहुंचने के पहले कुतुबुद्दीन ऐबक ने मोहम्मद गौरी के भतीजे व
उत्तराधिकारी सुल्तान गयासुद्दीन मोहम्मद से मुक्ति पत्र प्राप्त किया था।
ऐबक एक तुर्की शब्द है जिसका अर्थ होता है चंद्रमा का देवता। कुतुबुद्दीन ऐबक 1206 ई॰ में भारतीय प्रदेश का शासक हुआ। 1208 ई॰ में उसे ज्ञासुद्दीन के
पुत्र महमूद से दास मुक्ति पत्र प्राप्त हुआ जो कुतुबुद्दीन ऐबक के वैध सुल्तान
बनने के लिए आवश्यक था। सुल्तान बनने के समय उसने मलिक तथा सिपहसालार की
उपाधि ली। ना तो उसने अपने नाम का खुतवा पढ़ा और ना ही
सिक्के चलाये।
शासक
बनने के पश्चात कुछ समय तक कुतुबुद्दीन ऐबक ने इंद्रप्रस्थ को अपना सैनिक मुख्यालय
बनाया परंतु गजनी के शासक यल्दोज के खतरे से बचने के लिए लाहौर को राजधानी बनाया। 1209 ई॰ में उसने गजनी पर हमला किया
तथा 40 दिनों तक गजनी पर नियंत्रण भी बनाए रखा। माना जाता है कि यल्दोज जनता के मध्य लोकप्रिय था
अतः वहां की जनता ने कुतुबुद्दीन ऐबक का विरोध किया जिससे उसको गजनी प्रदेश खाली करना
पड़ा।
कुतुबुद्दीन
ऐबक एक योग्य एवं उदार शासक था अपनी उदारता की वजह से वह “लाख बख्श” के नाम से जाना जाता था।
उसे कुरान का ज्ञाता होने के कारण कुरान ख्वां भी कहा जाता था। उस के
दरबार में ताज-उल-मासिर के रचयिता हसन निजामी तथा फख्र-ए-मुदाब्बिर
जैसे
विद्वानों को संरक्षण प्राप्त था।
दिल्ली सल्तनत के समय में बने वास्तुकला के नमूने
कुब्बत-उल-इस्लाम मस्जिद |
स्थापत्य कला के क्षेत्र में पूर्व शासकों द्वारा भारत में बनवाया गया प्रथम वास्तुकला की कृति कुब्बत-उल-इस्लाम मस्जिद था इसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 ई॰ में दिल्ली विजय के उपलक्ष में करवाया था। यह मस्जिद दिल्ली के महरौली में स्थित है इस मस्जिद के निर्माण सामग्री में हिंदुओं के 27 जैन मंदिरों के अंश थे। 1230 ई॰ में इल्तुतमिश ने इसके बाह्य आंगन को तुड़वा कर इसका क्षेत्रफल दुगना कर दिया। अल्लाउद्दीन खिलजी ने भी इस मस्जिद का विस्तार किया indo-islamic शैली में निर्मित स्थापत्य कला का यह पहला ऐसा उदाहरण है जिसमें स्पष्ट हिन्दू प्रभाव परिलक्षित होते हैं।
क़ुतुब मीनार |
क़ुतुब मीनार:-
यह स्थल दिल्ली से 12 किलोमीटर दूर महरौली नामक स्थान पर है। इसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने उस के फकीर ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में की थी। कुतुबुद्दीन ऐबक इसकी एक मंजिल ही बना सका शेष कार्य इल्तुतमिश ने पूरा किया फिरोज तुगलक ने भी इस मीनार की मरम्मत करवाई साथ ही 1506 ई॰ में सिकंदर लोदी ने भी इसकी मरम्मत करवाई इस मीनार के ऊपर चढ़ने के लिए 375 सीढ़ियां है। इस मीनार के निर्माण में लाल पत्थरों का अधिकाधिक प्रयोग किया गया है। इसकी प्रशंसा में पर्सी ब्राउन लिखता है, कि “किसी भी दृष्टिकोण से देखने पर यह एक अत्यधिक प्रभावशाली इमारत है। यह एक मुसलमानों को नमाज के लिए मुअज्ज़िन द्वारा पुकारने की मीनार है।“ढाई दिन का झोपड़ा |
डाई दिन का झोपड़ा कुतुबुद्दीन ऐबक ने ढाई दिन का झोपड़ा जो वास्तव में एक मस्जिद है। इसका निर्माण अजमेर में किया था। संभवतः मस्जिद निर्माण से पूर्व यहां कोई मंदिर व मठ था। जिसे तोड़कर मस्जिद का निर्माण करवाया गया था। यह मस्जिद कुब्बत-उल-इस्लाम मस्जिद की तुलना में अधिक बड़ा एवं आकर्षक है। इसके आकार को कालांतर में इल्तुतमिश के द्वारा विस्तार किया गया। इसके प्रत्येक कोने में चक्राकार बांसुरी के आकार की मीनारें निर्मित है।
पोलो खेलते समय घोड़े से गिर
जाने के कारण कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु 1210 ई॰ में हो गई इसके बाद इल्तुतमिश गद्दी पर बैठा जिस समय
इल्तुतमिश गद्दी पर बैठा उससे पहले वह बदायूं का प्राणपति था कुतुबुद्दीन ऐबक तथा
इल्तुतमिश के बीच आरामशाह शासक हुआ उसने 8 माह तक शासन किया।
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